लगन ये कैसी ?
” लगन ये कैसी”?
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लगा के मेंहदी
डाल के घूँघट !
नाची आज
मयूर के जैसी !!
लाज-शर्म
चिलमन में छुपाई ,
धुन अलबेली !
बनी ये कैसी ??
तन भी नाचे !
मन भी नाचे !
लगी हृदय में
लगन ये कैसी ??
लहराती हूँ !
“दीप-शिखा”- सी
लगती भी हूँ !
उसी के जैसी ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”