लगता है..
लगता है अब कायनात में ,
पहले जैसी बात नहीं ।
मानव के अपने दिल में भी ,
पहले से जज्बात नहीं ।।
यूँ तो सूरज चाँद सितारे ,
खूब चमकते रहते हैं ।
जैंसे होते थे वैसे अब ,
मनभावन दिन रात नहीं ।।
सावन भादों के बादल ,
भी कितनी झड़ी लगाते थे ।
अब तो सूखे मौसम रहते ,
बूंदों की बरसात नहीं ।।
हरियाली की चादर धरती ,
ओढ़ सजीली लगती थी ।
रंग बिरंगे फूल फलों की ,
देती अब सौगात नहीं ।।
उजड़े जंगल सूखे तरुवर ,
धूल उड़ रही मधुवन में ।
पंछी नीड़ बनाते जिनसे ,
हरे भरे वो पात नहीं ।।