लगता है सब ग़मो….
ग़ज़ल
लगता है सब ग़मो कि यूंही शाम हो गईं।
हमें सता उम्र इनकी यूंही तमाम हो गईं।
जिन सुनहरे पलो का इन्तज़ार था हमें।
अपनी वो भी खुशियां सर-ए-आम हो गईं।
दरकते से पलो में हमने थामी थी ज़िन्दगी।
वरना थी उम्र ज़द्दोज़हत के नाम हो गईं।
बड़े हुए तो बातें सुनी कुछ नही हो तुम
खज़ूर।
भला करके भी कहावत मेरे ब- नाम हो गईं।
मोहब्बतों में खों गयें हम ज्यों गंध-गुलाब़।
ता-उम्र अपनी मोहब्बतों के नाम हो गईं।
फँसे कुछ इस तरह से-सुधा-कश्मोक़श में हम।
बची सी जिस्त सच अब तो राम नाम हो गईं।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़