किसका असर हुआ
गुल भी वही है , ख़ार वही है , आते जाते यार वही हैं
फिर इतनी आवाजाही में गुलशन वीराना क्यों लगता है ।
खुशियां बिखरी हर चेहरे पर , कितने आते जाते लोग
फिर इतने चेहरों के रहते , ये अनजाना क्यों लगता है ।
फूल खिले हैं रंग – बिरंगे और फूलों – से हंसते लोग
खुशगवार ऐसे आलम में , बाग बेगाना क्यों लगता है ।
गुलशन के हर कोने – कोने , शमां रोशन है पुरनूर
अफ़सुरदा अफ़सुरदा सा फिर ये परवाना क्यों लगता है ।
किस की नज़र लगी बाग को या किसका ये असर हुआ
कितनी मस्त बहारें थीं, अब अफ़साना क्यों लगता है ।
अशोक सोनी
भिलाई ।