लखनऊ शहर
हसरतों को लिए लखनऊ का शहर।
झुग्गियों से भरा बाग तक का सफर।
गोमती तीर पर आ बसी झुग्गियां।
नींद से जागिये अब फँसी मुर्गियां।
शोहदे ,मनचले अब जो टकरा रहे।
ना इधर के रहे ना उधर के रहे।
मौत के घर खड़े टूट जर्जर हुए।
कांपती रूह जो घर से बेघर हुए।
डाक्टर प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम