लकड़ी का खेल
जन्म के समय में हो ,
मृत्यु के समय में हो ,
हो चाहे किसी वय में ,
होता निपट लकड़ी का ही,
परिपूर्ण रूप से खेल यहाँ ।
झूला हो चाहे चचड़ी ,
होता समग्र लकड़ी का ,
हमारे गृहों में सामाग्री ,
नितांत होता लकड़ी का ।
जगत में सबसे असीम ,
होती आकांक्षा लकड़ी की ,
महार्घ भी ना होती यह ,
होता अधम सदैव लकड़ी है।
लकड़ी का खेल अनमोल ,
सदैव मनुज के साथ होता ,
पादपों के माध्यम से ही ,
होता लकड़ी का उपज्ञा।
कुर्सी, टेबुल, फर्नीचर, शोफा ,
सब लकड़ी से आविष्कृत है ,
धरा पर जब तक है पादप ,
चलता रहेगा लकड़ी का खेल ,
जब तनी होगा लकड़ी का खेल ,
इतिश्री होगा हमारा विद्यमानता ।
नाम – उत्सव कुमार आर्या