लक्ष्य
लक्ष्य हीन है जो मनुज, पड़े उसे क्या फर्क।
रहा भटकता दर बदर, बेमतलब का तर्क।।
यूँ ही अपनी जिंदगी, करो नहीं तुम व्यर्थ।
उस मकसद को ढ़ूंढ़ लो, जिसका कोई अर्थ।।
लोलुपता से मुक्त हो,लक्ष्य बनाओ एक।
मंजिल तेरे सामने,देगा घुटने टेक।
मानव जीवन के लिए,बहुत जरूरी लक्ष्य।
किसी कार्य में पूर्णतः, होना होगा दक्ष्य।।
होना निश्चित लक्ष्य का, जीवन में अनिवार्य।
बोध दिशा का हो अगर,होते पूरे कार्य।।
आपाधापी में फँसा,जग का हर इंसान।
मगर लक्ष्य जो भेदता,होता वही महान।।
मुट्ठी भर होते यहाँ,दृढ़ संकल्पित लोग।
लक्ष्य भेदिया वाण का,करते जो उपयोग।।
मंजिल खुद आती नहीं, कभी किसी की ओर।
ध्यान टिका दो लक्ष्य पर, और लगा दो जोर।।
बस पथ पर चलते रहो, मिले फूल या शूल।
निडर साहसी हो बढ़ो, नहीं लक्ष्य को भूल।।
पथ पर कांटे हो भरा,या मुश्किलें हज़ार।
लेकिन तेरा हौसला,करता नैया पार।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली