लक्ष्य अगर कठिन हो
नदियों की प्रतिष्ठा पानी है अगर
शिखर के मोह को तजना होगा
पर्वत शिखर को छोड़ कर तुम्हें
इस धरातल पर ही सजना होगा
अंगारों के बीच में तप गल कर
लोहा बन कर निकलना होगा
आग की भट्ठी में स्वयं जल कर
सोना के जैसा पिघलना होगा
माना लक्ष्य है अगर बहुत कठिन
वीर अर्जुन के जैसा बन जाओ
बिन देखे ही मछली की ऑंखें
एक ही वाण से भेदने तन जाओ
राज सुख का मोह पल में त्याग
ऋषियों की तरह जो जीता है
भरत के जैसा भाई बन कर
भाई वियोग के दुःख को पीता है
बंधुत्व की जब कभी बात होगी
सखा कृष्ण के जैसा बन जाओ
और सुदामा से मिलने की खातिर
भूमि पर ही नंगे पांव दौड़ लगाओ
मन में अगर अटूट विश्वास भी हो
हो सकता है थोड़ा कहीं रुकना पड़े
कठिन लक्ष्य को अगर पाना हो तो
शायद तुम्हें थोड़ा कहीं झुकना पड़े
शरीर अगर थक कर चूर हो जाय
और राह में भी अंधकार घना होगा
पर दूर तक जाने की चाहत है अगर
तो रोशनी ही खींच कर लाना होगा