लक्ष्मी
है माँ लक्ष्मी तेरे रूप निराले!
तुम रहती उनके आंगन बस,
जो करत है धँधे काले वाले!!
कभी रूप दहेज को राखति,
कभी इंकम टैक्स के हवाले!!
सरस्वती के साधको से तुमने,
कौन सो बैर है अब तक पाले?
इन परहु कबहु कृपा दृष्टि तुम,
करियो जे सब अब तेरे हवाले!!
फूल दीप नैवैद्य से करते स्तुति,
काहे तुमने सरस्वती से बैर है पाले?
उनके भक्तन पर कछुक दृष्टि देउ,
का जीवन भर मरिहे भूखे साले?
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट कवि पत्रकार सिकंदरा आगरा -282007 मो;9412443093