—- रफ़्तार जिंदगी की —-
चलता फिरता निकल लेता हूँ
अपने सफर पर रोजाना
वो ही सब रास्ते और वो ही
सब मंजिले सफर की मिलती हैं !!
खुद को लगता है जैसे ढो रहा हूँ
वो ही काम रोज किये जा रहा हूँ
मिलता जुलता उठना बैठना
फिर लौट के घर में सिमट रहा हूँ !!
नीरस जैसे बन जाती है जिंदगी
जब अकेले में समेट लेता हूँ
कुछ पल सब क्वे संग काट के
बस पल भर को प्रफुल्लित हो रहा हूँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ