* रौशनी उसकी *
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
रौशनी है तेरी तभी हम सब चमकते हैं
खुदाया तेरी असमत से ये नगमें दमकते हैं
कभी जब हम हैरान होकर किसी की खूबसूरती पर
तारीफ़ के पुल बनाया करते है वहीं हम भूल जातें हैं
के रौशनी है तेरी तभी हम सब चमकते हैं
खुदाया तेरी असमत से ये नगमें दमकते हैं
न कोई तुझ सा हुआ पैदा न कोई तेरे बराबर है
तु मालिक है हमारा हम तो तेरी ही रियाया हैं
निगाहें करम हम पर रहे तेरा हमेशा ही
तुझे भूले से जो भुले तो दुख उस पर बरसते हैं
मशक्कत युं तो दुनिया में हर कोई को करनी होती है
निगाहें पाक रख कर करें तो सफलता हासिल ही होती है
न घबराना न शर्माना परसतिश कभी जाया नही जाती
मिला करता है फल उसका ये छप्पर फाड कर भी देती है
इरादा हो अगर पक्का और निगाहें दूर दृष्टि सी
राह बनती है पत्थर से के जैसे नदिया बह्ती है
रौशनी है तेरी तभी हम सब चमकते हैं
खुदाया तेरी असमत से ये नगमें दमकते हैं