रोला छंद
रोला छंद
माटी का इंसान , मृदा में ही मिल जाना ।
उस दाता के खेल, भला वो कब पहचाना ।।
आ जाता जब वक्त , जीव का कब वो टलता ।
जल जाता अभिमान, चिता पर जब वो जलता ।।
सुशील सरना / 30-1-24
रोला छंद
माटी का इंसान , मृदा में ही मिल जाना ।
उस दाता के खेल, भला वो कब पहचाना ।।
आ जाता जब वक्त , जीव का कब वो टलता ।
जल जाता अभिमान, चिता पर जब वो जलता ।।
सुशील सरना / 30-1-24