रोये रोये आज दिल रोये
(बिहार मे बाढ के समय और बाढ बाद की किसान की कहानी और दुख)
रोये रोये आज दिल रोये
मानसपटल सुधबुध खोऐ
कल थी अब कहा, हरी भरी खलियान
चहकती चडियो का बोल सुन, उठता किसान
पायल की छनछन चुडी की खनखन, गुलजार
कहा गये चहरे पर अनमोल धन मुसकान
रोये रोये आज दिल राये
कयारी कोख से उगता हुआ दुलरा ,कैसा अंजान
अभी अभी पाव फैलना सिखा था पत्ता-2 जान
मटमेला पानी गहरे तले ढुब ओछल, होता नवजात
ह्रदय जाने बोछ कितना, उलझन रात उलछाये
रातो मे नीद कहा तनमन को कही, प्रण ऊड़ी न जाये
चौबस कटा खेतियर की खेती, मनुरवा रोज टाका ले जाये
रोये रोये आज दिल राये
फिर ओ कल आऐगा, सूरज फिर छटाक बरसाऐगा
नित अभ्यास जिदगी की है जीना औरो सामने झुक ना पाऐगे। पात्थर को मेहनत नित प्रयास बल, हृदय से बीज उगाऐगे
खिल उठगे खेतहर आगन घर ,नन्हें पाहुन पैदा हो जाऐगे
माना हर बरिख खोया अपनो को सोचू, उगना कखनो नव दरख दिखाऐगे
रोये रोये आज दिल राये
मौलिक एवं स्वरचित
@श्रीहर्ष आचार्य