रोम रोम है पुलकित मन
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रोम रोम है पुलकित मन,है रोम रोम में राम।
हुआ आनंदित मेरा मन ,लेकर प्रभु का नाम।
राम नाम है सत्य का,सत्य शिव का स्वरूप,
शिव सुंदर है,शिव विष्णु है,शिव है ब्रह्मरूप।
तीनों एक में समाहित हैं ,यही राम का धाम।
ढाई आखर हैं शिव के,ढाई आखर हैं श्रीराम,
पुख्ता है ये दिव्य धरोहर,दिल में इसको थाम,
बड़ा अजीब है संचित मन,तिलिस्म ये मुक़ाम।
श्रीराम नाम से सागर में,पत्थर भी तर जाते हैं,
इसके निरंतर सुमिरन से,पाप सारे मर जाते हैं,
गर समर्पित मन हो,तो मिट जाएं संशय तमाम।
रोम रोम है पुलकित मन,है रोम रोम में राम।
हुआ आनंदित मेरा मन ,लेकर प्रभु का नाम।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।