रोम जले.. भले जले,
सजावट से सजा रह गया मंडप,
जब दुल्हन ही….घर छोड़ चली,
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वजह सिर्फ इतनी थी,
घरवालों ने वक्त पर सुनी नहीं,
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हर बार साँप तो निकल जाता है,
हम लकीरें पिटते रह जाते हैं,
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हमें खुशी नहीं बच्चों की प्यारी,
हमें है रस्म रीति-रिवाज परम्परा प्यारी,
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आग लगे बस्ती में हम हैं मस्ती में,
रोम जले ..भले जले,
हम हैं झूठ पाखंड की मस्ती में,
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महेंद्र,