*रोना-धोना छोड़ कर, मुस्काओ हर रोज (कुंडलिया)*
रोना-धोना छोड़ कर, मुस्काओ हर रोज (कुंडलिया)
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रोना-धोना छोड़ कर, मुस्काओ हर रोज
करो हमेशा हर सुबह, मुदित हृदय की खोज
मुदित हृदय की खोज, उदासी कभी न लाओ
खिले अंग-प्रत्यंग, प्रफुल्लित मन बन जाओ
कहते रवि कविराय, वस्तु अनमोल न खोना
हॅंसी जगत् का सार, बुरा लगता है रोना
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451