रोटी की जद्दोजहद
दो रोटी की जद्दोजहद में ।
सुबह से रात हुई ।तलाशने निकले घर से ।
जिंदगी बेहाल हुई ।।
घर से दूर निकल आये ।
अपनों से बिछड़ गए ।
पुरे हो जाएं सपने ।
बस इसी अस में।
अपनों के सपनों से भी ।
हम दूर निकल आये ।
मंजिल तलाशते-तलाशते।
जिंदगी मुहाल हुई ।
जितना भी कमाऊं ।
पूरी हुई न फिर भी हसरतें ।
एक चाहत पूरी हुई नहीं कि ।
बड़ गयी दूसरी चाहतें ।
युवा हो रहे बच्चे भी ।
करते हैं नित नयी उम्मीदें ।
इन उबड़-खाबड़ रास्तों में ।
जिंदगी बेजार हुई ।।
आरती लोहनी