************* रोटियां ************
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हर रोज कहीं न कहीं सेंकते है रोटियां,
खुले बाजार सरेआम बेचते है रोटियां।
इंसानियत नीलामी की ओर है भागती,
कोई बेचता तो कोई खरीदते है रोटियां।
खोटी नीयत की भेंट चढ़ी है रोजी रोटी,
एक दूसरे के हाथ से खोसते है रोटियां।
रोटियों की खातिर बिकती रहे बोटियां,
पेट भरन की खातिर खोजते है रोटियां।
रोटियों पर राजनीतिक रंग चढ़ जाए,
सौदेबाजी की भेंट में चढ़ाते है रोटियां।
रईसजादे रोटियों की कीमत न जानते,
अमीरों की थाली से फेंकते है रोटियां।
गरीबी में बदनसीबी का आलम देखिए,
भूखे पेट ही सो जाते तरसते है रोटियां।
पग पग पथ बदलती रोटी मनसीरत,
रहते हाथ खाली कहीं भरते है रोटियां।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)