रोज दस्तक होती हैं दरवाजे पर मेरे खुशियों की।
रोज दस्तक होती हैं दरवाजे पर मेरे खुशियों की।
मैं भागकर देखता हूं,
तो वो वहाँ नहीं होती।।
बहुत आस हैं,मुझे अभी भी,
आज रात मैने दरवाजा ही बंद नहीं किया।
लेकिन कमबख्त आज मेरी आँख लग गई ।।
कल मैने फिर से कुर्सी का दामन थामा,
लेकिन आज एक दारू की,
बोतल कहीं से हाथ लग गई।।
आज ठान ली कि रूबरू होना है खुशियों से।
पता चला मेरी खुद से तो ,
कभी बात ही नहीं होती।।