रोज डे पर रोज देकर बदले में रोज लेता है,
रोज डे पर रोज देकर बदले में रोज लेता है,
काग़ज़ी फूलों में भी वो सुगंध खोज लेता है
ये कैसा आशिकी-ऐ-दौर है जिसमे, कहीं,
किसी की जान जाती है कोई मौज लेता है !
!
डी के निवातिया
रोज (ROSE ) = ग़ुलाब
रोज डे पर रोज देकर बदले में रोज लेता है,
काग़ज़ी फूलों में भी वो सुगंध खोज लेता है
ये कैसा आशिकी-ऐ-दौर है जिसमे, कहीं,
किसी की जान जाती है कोई मौज लेता है !
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डी के निवातिया
रोज (ROSE ) = ग़ुलाब