रोग की पीड़ा ।
रोग है जो भोग है,
सिलसिला हर रोज है,
संसार है जो जी रहा,
प्राणी अछूता नहीं रोग से,
सत्य शाश्वत जीवन का,
बचा नहीं बिन रोग के,
पीड़ा इसकी दोस्त है।
बख्शे नहीं किसी को रोग है,
दुःख का ही प्रकोप है,
रोग मानव का शोक है,
पलता ही है, उदर कोख है,
त्रसित मानव, ग्रसित मानव,
रोग बड़ी व्याधि जग की,
जीवन कर दे आधी सबकी।
सेवा भाव सहयोग भावना,
रोग मुक्ति का आधा उपाय,
उपयुक्त आहार शारीरिक प्रयास,
औषधियों का उपयोगिता है खास,
रोग फिर भी बना है राज,
रोग रोग नही करता रहम,
दुःखद है, रोग है संग।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।