रोकी जाती घुड़चढ़ी
विनोद सिल्ला के दोहे
रोकी जाती घुड़चढ़ी, आती खबरें देख।
मानवता को मान कर, मेट विभाजन रेख।।
किन ग्रंथों में हैं पढ़े, फलां लोग हैं नीच।
आग लगा उन ग्रंथ को, मानवता को सींच।।
सब मानव जब एक हैं, एक हाड अरु मांस।
संरचना भी एक है, क्यों बांट का प्रयास।।
भेदभाव में लिप्त जो, तजो सभी वो रीत।
पड़ें सुनाई हर तरफ, समता के ही गीत।।
शंखनाद कर दीजिए, नवयुग का आगाज।
राग पुराने खो गए, बजा आज के साज।।
मानव बस मानव रहे, मिटे दिलों के भेद।
रोटी – बेटी एक हो, एक सभी की बेद।। बेद = पीड़
सिल्ला’ भी है कह रहा, समानता की बात।
भेदभाव ने ही किया, मानवीय आघात।।
-विनोद सिल्ला