रे फिर बापू मर जाते हैं!!
स्वारथ की पोथी को पढ़कर,
लोलुपता नभ पर चढ़कर ,
अपनी -अपनी ढोली ढपकर,
प्रेम दया सब कुछ तजकर,
जब हम निज मुख देख दरप में,
तनिक नहीं सकुचाते है!
रे फिर बापू मर जाते है!
जब अन्यायो की सूली चढ़,
नत मानवता मिट जाती है,
अपनी ही करनी पर विस्मित,
मन की आंखे रो जाती है,
झूठी शानो के झटको में,
जब सादेपन ढह जाते है ,
रे फिर बापू मर जाते है!!
जब सुई भरे धन की खातिर
सच पर हमले हो जाते हैं
जब खुद अपने अपनों में छिप,
अपनों को ही लड़वाते हैं ,
जब खुद को जीवित कह देने पर
खुद ही गैरत खाते है ,
रे फिर बापू मर जाते हैं!!
माता की कोख में कल जन्मा,
कब हैवान हो जाता कि,
जन सेवा के भेष धरे जब ,
पालक भक्षक बन जाता कि,
जब मूल्य ,त्याग ,नैतिकता सब
केवल जुमले रह जाते है!!
रे फिर बापू मर जाते हैं!?
नहीं एक बार बापू मिटते ,
हर पल वो प्राण गवाते है,
जब -जब हम अपने अंतर मन की ,
पावन आवाज दबाते हैं ,
जब दूर कहीं बाजारों में
ईमान खड़े बिक जाते है!!
रे फिर बापू मर जाते!!
रे फिर बापू मर जाते!!