*रे इन्सा क्यों करता तकरार*
मानव मानव भाई भाई,
फिर क्यों इन्सा बना कसाई।
रिश्ते नाते सारे भूला,
मद मस्ती में ऐसे झूला,
करता घातक वार,
रे इन्सा क्यों करता था तकरार।।१।।
लूट बुराई रिश्वतखोरी,
छल कपट से भरी तिजोरी।
खुद अपनों से करता चोरी।
अबला की इज्जत से खेले,
करता दुर्व्यवहार।
अरे इन्सा क्यों करता तकरार।।२।।
एक खून है एक सांस है,
फिर कोई क्यों इतना खास है।
सबकी इज्जत इतनी खास है।
छुआछूत और भेदभाव का,
क्यों करता है प्रचार।
रे इन्सा क्यों करता तकरार।।३।।
लोभी बनकर बेईमानी से,
बनाकर झूठी कहानी से,
छला अपनों को ही चालाकी से।
दुष्यन्त कुमार की इस वानी से,
होगा कुछ सुधार।
अरे इन्सा क्यों करता तकरार।।४।।