रे आंधी! तू ——
रे आंधी! तू किछ नै करमें,
अहिना जेमें बाधक ओर,
ज्ञानदीप छै हाथ में हमरो,
तें नै हमरा ककरो डोर।
रे आंधी! तू किछ नै करमें—–।
बुझलौं हम छी भगजोगनी रे,
माणिक सन नै हमर इजोत,
माँ के जग में मणि विभूषय,
भगजोगनी कि गेल पराय,
जते करम के धूर मनै छै,
ओ कि बनतै ककरो घोर ,
, रे आंधी! तू किछ नै—– ।
हम अभिचारिणी ओ विद्या के,
जे छै जग में व्याप्त एतौ,
ज्ञानक सुरसरिता संग हमहुँ,
जग में रहबै जतौ ततौ
, ज्ञान जखैन हमरे संगे छै
,तहन कोना नै हेतै भोर,
रे आंधी! तू किछ नै—–।
हम करमक छी योगी भोगी,
तें कंटक पथ पाबै छी,
ठामें ठामें ठोकर खाऽ क,
दीन हीन कहाबै छी,
कांटक संग पाटल बनि जग में,
हम हीं गमकबै रे ! चहुओर,
रेआंधी! तू किछ नै करमें,
अहिना जेमें तू बाधक ओर।
ज्ञानदीप छै हाथ में हमरो,
तें नै हमरा ककरो घोर, रे आंधी! तू—– ।
उमा झा