रेशम की डोर राखी….
रेशम की डोर तुम मुझे बांध रही हो,
और हिफाज़त भी मेरी मांग रही हो…
कलाई पे राखी तुम मुझे बांध रही हो,
और सौगात भी तुम मुझे ही दे रही हो…
मेरी इस उम्र का कोई भरोसा भी नहीं,
और तुम दुआ में लंबी उम्र मांग रही हो…
हां, बचपना भरा है मुझ में, जानता हूं मैं,
आज तुम मुझे दुनियादारी दिखा रही हो…
क्यूं हरेक दिन तुम मेरा हाल पूछ रही हो,
ज़रा सी बात पे नज़र मेरी उतार रही हो…
टूट गए बचपन के खिलौने, क्यूं ढूंढ रही हो,
मेरे लिए तुम माटी के खिलौने बना रही हो…
कीमती धागा तुम सिर्फ मुझे ही बांध रही हो,
और कीमत धागे की तुम मुझसे छुपा रही हो…
मैं समझदार हो गया हूं फिर भी घबरा रही हो,
आराम करो, बचपन से घर जो संभाल रही हो…
राहुल जज़्बाती