रेलगाड़ी रेलगाड़ी
मित्रों सम्भवतः आपको स्मरण हो कि पिछले वर्ष एक रेलगाड़ी अपने गंतव्य से अलग दूसरे स्टेशन पर पहुँच गयी थी और वह भी दस घण्टे अतिरिक्त समय लेकर। वह पूरा अतरिक्त समय यात्रियों ने बिना किसी सुविधा के बिताया था। उनकी तकलीफों को ध्यान में रखकर यह रचना लिखी थी। आज एक वर्ष पश्चात आपके सम्मुख यह रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ। अपने अमूल्य सुझावों से अवश्य अवगत कराइयेगा।
रेलगाड़ी रेलगाड़ी बन गयी है बैलगाड़ी।
पटरी पटरी चलती थी सीधे राह निकलती थी,
पहले से तय रूट थे उनपर ही वह चलती थी,
बीच बीच में टेशन थे थोड़ी देर ठहरती थी,
इन दिनों वह चलती है तिरछी आड़ी तिरछी आड़ी।
रेलगाड़ी रेलगाड़ी बन गयी है बैलगाड़ी।
समय सारणी के संग उसका बहुधा अच्छा नाता था,
कभी कभी उसमें व्यवधान माना के पड़ जाता था,
दस , बारह , पन्द्रह घण्टे लेट कभी हो जाती थी,
अब तो हफ्तों लेती है हाथ गाड़ी हाथ गाड़ी।
रेलगाड़ी रेलगाड़ी बन गयी है बैलगाड़ी।
थोड़ी कम थोड़ी ज्यादा लेकिन सुख सुविधायें थीं,
खाना पानी मिलता था माना कुछ बाधाएं थीं,
दस दस घण्टे दाना पानी का अब पता नहीं रहता,
अब तो उससे बेहतर है ठेला गाड़ी ठेला गाड़ी।
रेलगाड़ी रेलगाड़ी बन गयी है बैलगाड़ी।