रेत
सूखे रेत पर एक मर्तवा भी बारिश की बूंदे पड़ जाए तो बूंदों के निशां तब तक रहते है जबतक कि कोई वहां से गुज़र न जाए।वो पूछते हैं कि क्या तुम कभी याद करते हो?अब क्या जवाब दिया जाए शायद उन्हें इसका इल्म ही नहीं कि एक व़क्त के बाद याद नहीं किया जाता बल्कि महसूस किया जाता है।सींखंचों से आती रोशनी पूरे अंधकार को कम करती है इतना कि अंधेरा कम हो सके।एक मर्तवा न देखा ना सही पर हर मर्तवा उपेक्षा करना कितना न्यायसंगत है तुम ही जानो।केवल बोल भर देने से किसी का प्रेम नहीं दिखता बल्कि वो बाते जो एकांत में एक ख़ास सिहरन पैदा करती है वह प्रेम है।जीवन में बहुत कुछ जूट जाता है पर जो कुछ भी मिलता है वही सरमाया है….
मनोज शर्मा