रेत सी फिसलती जिंदगी
कभी गमों से पीछा छुड़ाती जिंदगी
कभी खुशियों को गले लगाती जिंदगी
हों पकड़ कितनी भी मजबूत
रेत सी फिसलती, चली जाती जिंदगी
कितने ही सुनहरे अवसर आते हैं
हाथ पर हाथ धरे यूं ही बैठे रह जाते हैं
समय कभी किसी के लिए रुकता नहीं
पछतावे के सिवा कुछ हाथ आता नहीं
रह न जाए कुछ अनसुलझा कुछ अधूरा
दिल के अरमानों को कर लेना आज पूरा
छाया बुढ़ापा ,बीता यौवन और बचपन
कल के भरोसे में,बीतता जा रहा ये जीवन
रेत सी फिसलती ही जा रही जिंदगी
कुछ धर्म,कर्म अच्छे कुछ कर ले बंदगी
सन्मार्ग पे चल कर,कर लेना कुछ परोपकार
गर,करें परिश्रम तो सपने होते हि हैं,साकार