*** रेत समंदर के….!!! ***
” माना कि कुछ सुकून है…
इस किनारे पर…!
शीतल हवाओं के कुछ इशारे भी हैं…
इस किनारे पर…!
मगर कहता है…
ये रेत समंदर के…!
मत देख सपने इस किनारे पर…!
आयेंगे कुछ लहरें यहाँ…
और तेरे पांव से…
यूँ ही हम भी सरक जायेंगे…!
बिखर जायेंगे तेरे सपने यहाँ…
मेरे एक-एक कण की तरह…!
ये बरसों के तज़ूर्बें हैं मेरे…
मैं तेरे लंबी सफ़र का सहारा नहीं…!
तू चल उस सड़क पर…
जो कुछ नरम नहीं है मेरी तरह…!
भले लंबी हो डगर…
शायद…!
कुछ तकलीफ़ होगी ओ सफ़र…!
मगर दावा है मेरा…
चलते-चलते अपने कोई, मिल जायेंगे…!
और सपने तेरे…
हकीकत में निखर जायेंगे…!
और सपने तेरे…
हकीकत में निखर जायेंगे…!!
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