****रेत पर कभी महल नहीं बनते****
रेत पर कभी महल नहीं बनते
क्या फायदा बे वजह जताने का
अरमानो को रोंद के जो चले जाते हैं
क्या फायदा किसी और का साथ निभाने वाले !!
दिल तोड़ के जाते हैं दिल लगाने वाले
बैठे हैं किसी और के साथ हम को बताने वाले
जब प्यार कर के निभाने का मादा नहीं था
तो क्यूं लगा के तडपाया ओ सताने वाले !!
जैसे आंधी के आने से रेत का कोई सार नहीं रहता
पल में यहाँ दुसरे पल में इकरार नहीं रहता
लगाना है तो लगा के निभाया कर ओ लगाने वाले
यूं आँखों में अश्रू की धार को बहाने वाले !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ