रेत के महल
रेत के जो महल बनाई थी हमने, न पता था उसको ढहना है!
जानता था न मैं कि एक दिन, भीच लब को ये गम सहना है!!
आरज़ू क्या थी, क्या थी चाहत, क्या क्या ख्वाहिशें उससे करना है!
तकते रहते थे जिसको एकटक, अब उम्र भर उसको तकते रहना है!!
ख्वाब न देखे तो क्या मर ले, हमको तो कड़वे हक़ीक़त से डरना है!
चौंक कर आंखे खुल न जाये मेरी, अब ताउम्र मुझे सपनो में रहना है!!
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०३/२०२०)