~रेत की आत्मकथा ~
रेत की आत्मकथा
मैं पत्थर पहाड़ की बेटी हूं,
मैं पत्थर पहाड़ की बेटी हूं।।
किस्मत की मारी, दुखियारीन,
महानदी की रेती हूं।
मैं पत्थर पहाड़ की बेटी हूं।।
उद्गम स्थल पत्थर पहाड़,
जंगल झाड़ी से टकराती।
साथ जीने,साथ मरने,
जलधारा में आती।।
अनेक जगह ठोकर खाती,
बीच भंवर में छोड़ गई।
जलधारा का किया भरोसा,
वह किस्मत मेरी फोड़ गई।।
जो भी आते ,रौंदकर जाते ,
सहन कर लेती हूं।
मैं पत्थर पहाड़ की बेटी हूं।।
नहीं ठीकाना ,मुझ अभागन की
ठोकर खुब खाती हूं।
कौन बनेगा हमदर्द मेरा,
द्वारे द्वारे जाती हूं।।
सिमेंट है यारा,मेरा प्यारा,
मेरा जीवन साथी।
वंदन करूं,नमन करूं
धरती मां के माटी।।
मैं अभागन, दुखियारीन,
महानदी की रेती हूं।
किस्मत की मारी,परद्वारी
पत्थर पहाड़ की बेटी हूं।।
माफिया आते, मुझे उठवाते
गांव शहर बिकवाते है।
गुंडागर्दी, दादागिरी कर
मालामाल हो जाते हैं।।
ग्रीष्म ऋतु में कृषक बंधु का
मैं सुंदर खेती हूं।
पत्थर पहाड़ की मैं बेटी
महानदी की रेती हूं।।
डां विजय कन्नौजे अमोली आरंग जिला रायपुर छ ग