रेत का घर
मौसमे दिल पे छाई गुलाबी रंगत
कोई अरमां जगा लिया हमने,
खिल उठे फूल फिर उडी खुश्बू
रेत का घर बना लिया हमने ,
उठा तूफां ज़ज़्बात के समंदर में
दर्द-ए -लहर में मुस्करा लिया हमने,
डूब के मैकश निग़ाहों में तेरी
इश्क़ मन में बसा लिया हमने ,
गुलों से दिल भर गया शायद
ग़म राहों में बिछा लिया हमने ,
घेर रखा जब रात के अंधेरों ने
दिया उल्फत का जला लिया हमने ,
गुज़र जाए ज़िंदगी साये में तेरे
ज़ुल्फ़ों में जहाँ बसा लिया हमने