रेती सा प्यासा प्यासा हूँ,
गंगा के तट पर रहकर मैं रेती सा प्यासा प्यासा हूँ,
मन उड़े गगन में राकेट सा तन से जैसे मैं नासा हूँ,
करता है अनुसन्धान हृदय ज्यों चाँद पे ढूँढ़े जग पानी,
सपनों में चित्र भेजते हैं बनकर दो नयन रडार।
धीरे धीरे कोई आया मेरे मन मंदिर के द्वार।