रेगिस्तान
रेगिस्तान क्या है?
दूर- दूर तक विस्तृत
रेत ही रेत,
पीला सोना ही सोना।
सुंदर है बालू के टीले,
मनोहर है मृगमरीचिका,
दिन में उष्ण रात में शीतल,
किरणें करती है अठखेलियाँ।
नहीं है मगर
स्नेह से छलकती नदी,
त्यागी, परोपकारी वृक्ष,
स्वागत में बिछलती घास।
आह! दिल में लगी फांस,
कुछ याद आया,
यह रेगिस्तान
शहर कैसे आया?
निरन्तर विकास है,
सौन्दर्य है, स्पर्धा है।
लय है, गति है, व्यवस्था है,
मगर स्नेह का ह्रास है।
रह गए हैं कंटीले कैक्टस,
नई सभ्यता के प्रतीक।
धारा, नदी, वृक्ष कहाँ?
क्या हो गए वे अतीत?
क्या फिर से रेगिस्तान में
नखलिस्तान बन पाएगा ?
या मरू-मरीचिका में,
जीवन गुजर जाएगा।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)