रेखा
रेखा
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दो अक्षर
चार मात्राओ से निर्मित
नाम के अनुरूप
अत्यंत गूढ़
अर्थ समेटे स्वंय में,
अत्यंत सरल, सामान्य
लेकिन निर्भर आकृति पर,
कभी सीधी सपाट,
तो कभी आडी टेढ़ी,
या उलझी हुई,
सरहद पर पड़े तो बॅटवारा,
घर में पड़े तो दरार,
माथे पर पड़े तो शिकन,
हथेली पर उभरे तो किस्मत
कागज़ पर पड़े तो अनुपम अनूठी कला,
वचन में बंधे तो लक्ष्मण
शिला पर पड़े तो लकीर
नारी के लिए बन जाती है
कभी सौंदर्य का पर्याय
काजल, सिंदूर बन लुभाती है
कभी इसके विपरीत
बाँध देती है दायरे में
नाम से लेकर सीमाओं तक,
तय करती है,
उसका भविष्य
और बनकर रह जाती है
उसका भाग्य___
मात्र कहने के लिए
एक “रेखा” ही तो है
!
स्वरचित : डी के निवातिया