रूह
रूह एक दिन बदन से निकल जायेगी
बस यूँ ही तकदीर सभल जायेगी
किरण आसमा बन लपट जलं जायेगी
नीचे वालों की क्यूं याद कल जायेगी
नदियाँ बह चट्टान में बदल जायेगी
हिमालय की गोद फिर छल जायेगी
जेहन मे छुपी चाह यूँ ही टल जायेगी
जब तेरी पोल फिर से खुल जायेगी
खामोशियाँ कुछ कह उछल जायेगी
हिचकियाँ जब तलक मचल जायेगी
एक दिन खुदा की खुदाई चल जायेगी
जब वह तुझे फिर से मिल जायेगी
यूँ आस फिर मिलन की मधु पल जायेगी
जब हवा जमाने की फिर बहल जायेगी
डा मधु त्रिवेदी