— रूह और बेटी —
पाल पोस कर बड़ी हो गयी
मेरी लाडली बहुत बड़ी हो गयी
पढ़ लिख कर समझदार हो गयी
अब शादी के लिए भी समझदार हो गयी
दिन वो आया घर से विदाई हो गयी
देखते देखते पग फेरे की रस्म हो गयी
घर आयी समेट लिए अलमारी के कपड़े
ले जाने को सब ससुराल, तैयार हो गयी
ले गयी साथ वो सारी यादें मायके की
जिन्हें पहन ओढ़ कर वो ठुमकती थी
चिडिया की भातीं चेहकती थी हर दम
पल पल उस की हर बात महकती थी
आना जाना लगा रहे बस यही सकूंन है
बेटी को घर से विदा करना बहुत कठिन है
दिल पर रख कर पत्थर सब करना होता है
क्या कभी मायके से दूर यह रिश्ता होता है ?
अजीत कुमार तलवार
मेरठ