रूसल हमर पूर्णिमा केर चाऽन
रूसल हमर पूर्णिमा केर चाऽन (कविता)
हाय रे, हाय, हाय रे हाय !
रूसल हमर पूर्णिमा के चाऽन !
मरि जाउ देखि बिनु हम तोरा सुनरकी,
देखू जखन नै जाउ कहु !
किया रूसल हमर गोरकी आय !
हाय रे, हाय, हाय, रे हाय !
रूसल हमर पूर्णिमा केर चाऽन!
अहाँ लगै आउ ज कखनो,
चट करैछी हमे उपहास !
हे ऐना नै उठि बैसू ताकू कखनो,
डऽर लागैए गप्प आखिसँ मारब !
काली रूपमे देखलौँ भद्रकाली आय !
हाय रे, हाय, हाय, रे हाय !
रूसल हमर पूर्णिमा केर चाऽन !
बड आस रहै अहाँ किछू नै कहितौं,
बहिन जानकी जेना अहाँ रहितौं !
कि गलती भेल हमरासँ अखने बाजू,
हेयै पतरकी हमर अखनो ताकू !
मिथिला नगरी सिंहेश्वर बैजधाम घुमायब,
बिहार के भाषा मैथिली सेहो सिखायब,
हँसि दिअ हे हमर पूर्णिमा केर चाऽन !
हाय रे, हाय, हाय, रे हाय !
रूसल हमर पूर्णिमा केर चाऽन !
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य