रूबरू
रोज रूबरू होता हूँ
जिंदगी के हकीकत से
आश्चर्य होता है
कायनात के हर शख्स से
हँसता हूँ, हँसाता हूँ
जान कर रब के खेल से
सदियां गुजर गई, लोग गुजर गए
फिर भी अनजान क्यों हो उसके मर्जी से
– आनंदश्री
रोज रूबरू होता हूँ
जिंदगी के हकीकत से
आश्चर्य होता है
कायनात के हर शख्स से
हँसता हूँ, हँसाता हूँ
जान कर रब के खेल से
सदियां गुजर गई, लोग गुजर गए
फिर भी अनजान क्यों हो उसके मर्जी से
– आनंदश्री