रूप रोशनी
शीर्षक – रूप रोशनी
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
पिन 332027
मो. 9001321438
चिलचिलाती धूप में
किसी मजदूर की तरह
थकी देह लेकर
निराश मन से किसी खोयें
सपनें को तलाशने
निकलता था रोज।
शशशशश….
फिर! चारों ओर पसरा
धूप में एक सन्नाटा
एक रोशनी की चमक
किसी प्रकाश बिंदु की तरह
बढ़ी आती रोज।
मैं चौंक जाता हमेशा
हल्की सी सरसराहट भी
हवा की चलकर गुजर जाती
पीछे से ताकता
उस प्रकाश बिंदु को।
ऊर्जा के अपने लक्षण से
प्रकट होता सकल ब्रह्मांड
खींचती ऊर्जा अपनी ओर
अपने ही अनुकूल उर्जा को।
वो प्रकाश छुपकर फिर
प्रकट हुआ है आज
दिव्यता के रूप में
साक्षात् विचित्र रूप
भेद रूप,रूप-भेद।
रोशनी पर पहरे थे
हम भी कितने गहरे थे
पीछें-पीछें साथ-साथ
मौन हो अकेले चले
आज साथ रोशनी के
दूर हुये अंधेरे गहरे
रूप रोशनी चमक जीवन में
निखरती है नित्य।