रूप मधुर ऋतुराज का, अंग माधवी – गंध।
रूप मधुर ऋतुराज का, अंग माधवी – गंध।
लेखक लेकर लेखनी, लिखते ललित निबंध।।
साथी मैन बसंत का, लगा रहा मन-घात।
कोयल काली कूक कर, करे कुठाराघात।।
© सीमा अग्रवाल
रूप मधुर ऋतुराज का, अंग माधवी – गंध।
लेखक लेकर लेखनी, लिखते ललित निबंध।।
साथी मैन बसंत का, लगा रहा मन-घात।
कोयल काली कूक कर, करे कुठाराघात।।
© सीमा अग्रवाल