रूप पर अनुरक्त होकर आयु की अभिव्यंजिका है
रूप पर अनुरक्त होकर आयु की अभिव्यंजिका है
कर्मभूता सृष्टि लौकिक दृष्टि की अनुरंजिका है
आत्मा जगदात्मा में भेद क्या है, कौन जाने
देह हस्ताक्षर करे, जग हाजिरी की पंजिका है
— महेशचन्द्र त्रिपाठी
रूप पर अनुरक्त होकर आयु की अभिव्यंजिका है
कर्मभूता सृष्टि लौकिक दृष्टि की अनुरंजिका है
आत्मा जगदात्मा में भेद क्या है, कौन जाने
देह हस्ताक्षर करे, जग हाजिरी की पंजिका है
— महेशचन्द्र त्रिपाठी