#कुंडलिया//अल्हड़
अल्हड़ सुंदर रूप यह , दिल में उतरे देख।
कागज़-सा है साफ़ मन , अनुपम है चितलेख।।
अनुपम है चितलेख , बात कोयल-सी करती।
लहरें ज्यों तट चूम , रूप मोती का भरती।
सुन प्रीतम की बात , रहे कोई कैसे जड़।
चाहत भरता रूप , मिला जो तुमको अल्हड़।
#आर.एस. ‘प्रीतम’