रूप कुदरत का
** गीतिका **
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रूप कुदरत का निराला देखिए।
रंग गोरा और काला देखिए।
है कहीं पर धूप तो छाया नहीं।
इस सफर ने मार डाला देखिए।
दूर है मंजिल मगर रुकना नहीं।
पांव में है आज छाला देखिए।
कर रहे हैं भक्त प्रभु से याचना।
हो गया रौशन शिवाला देखिए।
कुछ समय की शान पर इठला रही।
खूबसूरत पुष्प माला देखिए।
चांदनी है रात मनभावन बहुत।
श्वेत आभामय उजाला देखिए।
ला रहा मुस्कान मुखड़े पर तनिक।
एक रोटी का निवाला देखिए।
तख्तियां तो अब कहीं दिखती नहीं।
शौक से बस पाठशाला देखिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)