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29 Oct 2024 · 1 min read

रूप आपका

गीतिका
~~
रूप आपका खूब सभी से, सुन्दर है।
हर्षित मन में प्यार बहुत ही, प्रियकर है।

अधरों पर मुस्कान सहज ही, जब खिलती।
लगता जैसे स्नेह उमड़ता, सागर है।

हर कोई है गीत आपके, जब सुनता।
झंकृत होता हृदय झूमता, झूमर है।

हवा महकती सभी दिशा में, शीतल सी।
देखो तो आनंद बहुत ही, बाहर है।

मेघ गगन पर उमड़ घुमड़ कर, खूब घिरे।
सावन की ऋतु भीगी भीगी, भू-पर है।
~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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