रूप अलौकिक हे!जगपालक, व्यापक हो तुम नन्द कुमार।
रूप अलौकिक हे!जगपालक, व्यापक हो तुम नन्द कुमार।
मातु यशोमति के ललना अब, लो सुनलो प्रभु भक्त पुकार।
पाप बढ़ा जब आज धरा पर, आन बसो भव है; मनुहार।
नाथ सहाय सदा रहिए हम, जान गये तुम एक उदार।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)