रूठी प्रियसी
हे प्रिये तुझे अहसास नहीं
मेरे दर्द का तुझे अहसास नहीं
जिंदगी का तुझे अहसास नहीं
समय सागर से मिलेगा एक दिन
इसका तुझे अहसास नहीं
भोली भाली कलिया सी तू
पूरब पश्चिम का अहसास नहीं
हर समय सोचती है तू
जिंदगी तो नाव बनी है
पतवार का तुझे अहसास नहीं
डूबते तिरते पथिक सी बनी
किनारे का तुझे अहसास नहीं
कैसे खड़ी हो तुम
समाज का तुम्हे अहसास नहीं
अपनी ही धुन में एठी खड़ी
कठिन जीवन का अहसास नहीं
‘अंजुम’ जीवन की रेल जा रही
तुम्हे वक्त का अहसास नहीं
हे प्रिये तुम्हे अहसास नहीं
मेरे दर्द का अहसास नहीं
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता ‘अंजुम’
मोबाइल-9927140483