रूठी किस्मत टूटी मोहब्बत
आगे सफर था,
और पीछे हमसफर ।
रूकते तो सफर छूट जाता,
और चलते तो हमसफर छूट जाता ।।
मंजिल पाने की भी हसरत थी,
और उनसे भी हमारी मोहब्बत थी ।
ऐ दिल अब तू ही बता,
उस वक्त मैं कहाँ जाता ।।
मुद्दत का सफर भी था,
और बरसों का हमसफर भी था ।
रूकते तो बिछड़ जाते,
और चलते तो बिखर जाते ।।
यूँ समझ लो प्यास लगी थी गजब की,
मगर पानी में जहर था ।
पीते तो मर जाते,
और ना पीते तो भी मर जाते ।।
इसलिये शायद अब कभी लौट ना पाऊँ मैं,
इन खुशियों के बाजार में,
क्योंकि गम ने ऊँची बोली लगाकर खरीद लिया है मुझे ।
अब कुछ ना बचा मेरे इन दो खाली हाथों में,
क्योंकि एक हाथ से किस्मत रूठ गई,
तो दूसरे हाथ से हमारी मोहब्बत छूट गई ।।
जिंदगी जला दी हमने जैसी जलानी थी,
अब धुँऐ पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी !!
गम यह नहीं की वक्त ने साथ नहीं दिया मेरा,
गम यह है कि जिसको वक्त दिया उसने साथ नहीं दिया मेरा ।।
टूट कर चाहना और फिर से टूट जाना,
बात छोटी है मगर जान निकल जाती है ये सोचकर ।
तेरे जाने के बाद उस दिन से मर गई ये देह,
जो जिंदा बचा मेरी रूह में,
वो था “तेरे होने का एहसास” ।।
याद आते हैं हमें वो सब,
तो फिर टूट के याद आते हैं ।
हमारे गुजरे हुए लम्हें,
और वो बिछड़े हुए लोग ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 08/11/2024
समय – 12 :18 (रात्रि)